श्रद्धांजलि

साथियों,

“गम का खज़ाना तेरा भी है मेरा भी…”
आज मेरे साहेब- जगजीत सिंह साहेब जी कि जयंती है, न मेरी कुवत है न मेरी कलम में इतना जादू कि अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो कर कुछ कह सकूँ… लेकिन कुछ नहीं कहा तो फिर किया क्या. साहेब के नगमों के चंद लाईनों को आपके सामने रख रहा हूँ…

साहेब… चिठ्ठी न कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए…
साहेब.. चाक जिगर के सी लेते हैं.. जैसे भी हो जी लेते हैं…
साहेब.. रंज और गम कि बस्ती का मैं बासिन्दा हूँ.. ये तो बस मैं हूँ कि इस हाल में भी जिंदा हूँ..
साहेब.. शाम से आँख में नमी सी है.. आज फिर आपकी कमी सी है..
साहेब.. किसका चेहरा मैं देखूं.. तेरा चेहरा देख कर..
साहेब.. तुम को देखा तो ये ख्याल आया.. ज़िन्दगी धूप.. तुम घना साया..
साहेब.. अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ.. आज फिर तुम्हे गुनगुनाना चाहता हूँ..
साहेब.. हजारों ख्वाशियें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
साहेब.. होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है..आपको सुनिए फिर समझिये जिंदगी क्या चीज़ है..
साहेब.. मैंनू तेरा शवाब ले बैठा.. मैंनू जद भी तुस्सी हो याद आये.. दिन दिहारे शराब ले बैठा..
साहेब.. झुकी-झुकी सी नज़र बेक़रार आज भी है..
साहेब.. किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है..
साहेब.. होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो..
साहेब.. दुनिया जिसे कहते हैं.. मिट्टी का खिलौना है..
साहेब.. तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है.. तेरे आगे चाँद पुराना लगता है..
साहेब.. कल चौदवीं कि रात थी.. शब्-भर रहा चर्चा तेरा..
साहेब.. कैसे-कैसे हादसे सहते रहे.. फिर भी हम हसतें रहें.. जीते रहें..
साहेब.. ये दौलत भी ले लो..ये शोहरत भी ले लो.. भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी.. मगर फिर कुछ सुनाओ आप अपनी जुबानी..
साहेब.. “क्या भूलूं क्या याद करूं..”

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी..

………………………………………………………………………………………….प्रभात रंजन झा

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